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शेर
दिल में ख़ाक उड़ती है कहने को बड़े हैं ज़ाहिद
मक्र का विर्द है पढ़ते हैं रिया की तस्बीह
लाला माधव राम जौहर
शेर
विर्द-ए-इस्म-ए-ज़ात खोला चाहता है ये गिरह
मेरे दिल पर दाँत है अल्लाह की तश्दीद का
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
दुख कटे ज़हमत कटे कट जाए बद-हाली सभी
वक़्त काटे ना कटे तो क्या करें किस से कहें
जतीन्द्र वीर यख़मी ’जयवीर
शेर
आए हैं सुनते कि ऐसा वक़्त भी आता है जब
हो दवा या फिर दुआ कुछ कारगर होता नहीं