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कहानी
मोहन इशारा न समझ सका। पुर सवाल नज़रों से देखता हुआ बोला, "मैं कुछ समझा नहीं, क्या बात है?"...
प्रेमचंद
नज़्म
ख़्वाब की माँग में नूर सिंदूर की कहकशाँ खींच दूँ
इक तख़य्युल की बे-रब्तियों को तसलसुल की ज़ंजीर दूँ
तारिक़ क़मर
ग़ज़ल
जिस ने दिए की कालक को भी माथे का सिंदूर किया
अपने घर की उस दीवार से अपना भेद छुपाए कौन