aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پادشہ"
दुनिया में पादशह है सो है वो भी आदमीऔर मुफ़्लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
हम पादशह-ए-मुम्लिकत-ए-इश्क़ हैं नाहक़मंसूर सा मारा गया सरदार हमारा
हम हैं ऐसे फ़राख़-रू दरवेशमहफ़िल-ए-पादशह से आर नहीं
इश्क़ है पादशाह-ए-आलम-गीरगरचे ज़ाहिर में तख़्त-ओ-ताज नहीं
ग़ालिब के छटे और सातवें शे’रों पर इज़हार-ए-ख़्याल मैं और मौक़ों पर कर चुका हूँ। यहां इआदे की ज़रूरत नहीं। इसके अलावा ऊपर की बहसूँ से अगर आप कुछ मुतमइन हुए हैं तो देख ही लेंगे कि मीर के मिसरे आशिक़ की भी याँ गुज़र गई रात/ और कोई तो...
मिसाल-ए-आईना यारो निखर गया कल शबअजीब सानेहा दिल पे गुज़र गया कल शब
"पाशा - अपने माथे की लट सँभालो। वर्ना मेरा ध्यान अपने पत्तों में नहीं रह सकता।" - "पाशा! कहाँ देख रहे हो? क्या दीवार के उस पेड़ से ताश के पत्ते लटके हैं” "अब के मैं ज़रूर जीतूँगी। क्योंकि मेरे पत्तों में एक 'पाशा' भी है।”...
साहब लड़कों की तो आजकल भरमार है। जिधर देखिए लड़के ही लड़के नज़र आते हैं। गोया ख़ुदा की क़ुदरत का जलवा यही लड़के हैं। घर अंदर लड़के, घर बाहर लड़के, पास पड़ोस में लड़के, मुहल्ला मुहल्ला लड़के, गाँव और शहरों में लड़के, सूबे और मुल्क में लड़के, ग़रज़ ये कि...
उसके साथी के हाथ से चाय की प्याली गिरते गिरते बची, “क्या कहा, मुस्तफ़ा कमाल मर गया!” इस के बाद दोनों में अतातुर्क कमाल के मुतअ’ल्लिक़ बात-चीत शुरू हो गई। एक ने दूसरे से कहा, “बड़े अफ़सोस की बात है, अब हिंदुस्तान का क्या होगा? मैंने सुना था ये मुस्तफ़ा...
لیکن یہ سب باتیں ابھی پردۂ خفا میں تھیں۔ نادر گردی اور نادر شاہی لوٹ کے باوجود دہلی کا تخت روشن اختر محمد شاہ پادشاہ غازی (جنہیں انگریز کے پٹھو مؤرخین نے ’محمد شاہ رنگیلا‘ بنا دیا۔ مرتب) کے زانو تلے ابھی مضبوط تھا۔ آصف جاہ نظام الملک اور اعتماد...
हमने दफ़्तर में क्यों नौकरी की और छोड़ी, आज भी लोग पूछते हैं मगर पूछने वाले तो नौकरी करने से पहले भी पूछा करते थे। “भई, आख़िर तुम नौकरी क्यों नहीं करते?”...
جدید تلمیحات کی مثالیں یہاں ہم مثال کے طور پر چند ہی تلمیحات کا ذکر کرتے ہیں مثلاً ذیل کی تلمیحات پر غور کرو۔ کال کوٹھری یا بلیک ہول (انگریزی عہد حکومت ہند کی تاریخ سے) پادشاہ گر (اسلامی عہد حکومت ہند کی تاریخ سے) الہ دین کا چراغ، تسمہ...
कभी सारे कभी गामा कभी पाधा कभी नीसामसाला जान कर इस नय सदा हर गीत को पैसा
हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अगर राय शुमारी की जाये तो नव्वे फ़ीसदी अदीब निकलेगा बाक़ी दस फ़ीसदी पढ़ा लिखा, लेकिन अगर शोअरा हज़रात के सिलसिले में गिनती गिनी जाये तो पता चलेगा कि पूरा आवे का आवा ही टेढ़ा है। अब ज़रा ये भी सोचिए कि राय शुमारी करने वाले...
میر محفل کا پورا نام (سابق) سیکنڈ لفیٹن نواب محمد عمر مجاہد نحاس پاشا کنجو تھا۔ بینک میں تازہ وارد تھے۔ خود کو کرناٹک کا نواب بتاتے تھے۔ تیور اور طنطنہ سے نواب ہی لگتے تھے، مگر ایسا معلوم ہوتا تھا کہ اپنی قلمرد کے نام سے پہلے انہوں نے...
दरवेश ने इस्बात में सर हिलाया। मैंने कहा, “जब उस साहिब-ए-ज़माँ ने हुक्म-नामे पर दस्तख़त किए तो उसके हुरूफ़ के ताक़तवर मुवक्किल उड़ कर यूरोप की सिम्त गए और उन्होंने तबाही फैला दी। दिमाग़ पाश-पाश हुए और जिस्मों के परख़च्चे उड़ गए... अफ़न्दिम। मैं उस अजनबी औ’रत को क्या जवाब...
بھی اس امر کی طرف اشارہ کرتی ہے۔ غزل میں سیاسی مضامین کے اظہار کے سلسلے میں حسرت موہانی اور مولانا محمد علی جوہر کے علاوہ ایک اور اہم نام اقبال سہیل کا ہے۔ حب وطن، تحریک آزادی کا ولولہ، قوم پرستی اور انگریز دشمنی ان کے یہاں بھی شروع...
वो एक शख़्स जो महफ़िल में बोलता था बहुतसुना है अहल-ए-नज़र से वो खोखला था बहुत
’’کوابولیاں بول گیے ہیں۔ زیر باد کہ ملک کے ہاتھیوں کے جنگل میں ایک برس یہ ہوں نین پڑیا۔ ہور بادل سوں ایک بوند نین ٹپکا۔ ایسا دکال پڑ گیا کہ ہاتیاں پیاس سوں لاچار ہوکر اپنے پادشاہ کے پاس قریب فریاد گئے۔ پادشاہ بول دیا کہ پانی کی خاطر...
अबुल फ़साहत को यूं भी सर उठा कर चलने की कभी आदत नहीं हुई। उन्होंने शायद ही कभी अपने सर को ऊपर उठाया हो। कभी कभी चांद को देख लिया तो देख लिया। चांद देखना भी उन्होंने तर्क ही कर दिया था क्योंकि एक मर्तबा अपनी हवेली की छत पर...
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