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नज़्म
ख़्वाब से तिफ़्ली के तू ने ही जगाया था हमें
नाज़ से परवान तू ने ही चढ़ाया था हमें
जोश मलीहाबादी
रेखाचित्र
शाहिद अहमद देहलवी
ग़ज़ल
हम न छोड़ेंगे मोहब्बत तिरी ऐ ज़ुल्फ़-ए-सियाह
सर चढ़ाया है तू क्या दिल से गिराएँ तुझ को