aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "घमंड"
उसे है सतवत-ए-शमशीर पर घमंड बहुतउसे शिकोह-ए-क़लम का नहीं है अंदाज़ा
वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का हैकि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी
ज़रीफ़ अबरू ग़ज़ब ग़म्ज़ा ग़ुस्सा ग़ौर ग़ज़लघमंड क़ौस क़ज़ा इश्क़ तंज़ नीम सख़ी
आनंदी ने हाथ से खड़ाऊँ रोकी, सर बच गया। मगर उँगली में सख़्त चोट आई। ग़ुस्से के मारे हवा के हिलते हुए पत्ते की तरह काँपती हुई अपने कमरे में आकर खड़ी हो गई। औरत का ज़ोर और हौसला, ग़ुरूर-ओ-इज़्ज़त शौहर की ज़ात से है, उसे शौहर ही की ताक़त...
सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर, औरत को अपने गहनों पर, और तबीब को अपने पास बैठे हुए मरीज़ों पर जो नाज़ होता है वही किसान को अपने लहलहाते हुए खेत देखकर होता है। झींगुर अपने ऊख के खेतों को देखता तो उस पर नशा सा छा जाता है। तीन...
हो किस घमंड में ऐ लख़्त लख़्त दीदा-वरोतुम्हें भी क़ातिल-ए-मेहनत-कशाँ कहेगा लहू
घमंड और भी बढ़ जाता और इतरातेये लोग जेब-घड़ी अपनी दुम में लटकाते
सुब्ह का वक़्त था। ठाकुर दर्शन सिंह के घर में एक हंगामा बरपा था। आज रात को चन्द्र गरहन होने वाला था। ठाकुर साहब अपनी बूढ़ी ठकुराइन के साथ गंगा जी जाते थे। इसलिए सारा घर उनकी पुरशोर तैयारी में मसरूफ़ था। एक बहू उनका फटा हुआ कुरता टांक रही...
वो सवारियां जिनको अब्बू क़बूल नहीं करता था दिल ही दिल में उसको गालियां देती थीं। बा’ज़ बद-दुआ भी देती थीं, “ख़ुदा करे इसका घमंड टूटे... इसका टांगा घोड़ा किसी दरिया में जा गिरे।” अब्बू के होंटों पर जो हल्की-हल्की मूंछों की छांव में रहते थे, ख़ुद ए’तिमाद सी मुस्कुराहट...
शौकत को अपनी दौलत का घमंड है। अपनी सूरत पर नाज़ है और ता’लीम पर अकड़ता है। ये सब कुछ धरा रह जाएगा। सैह पहर को राहत और मैं किश्वर के यहां पहुंच गए... “ओह।” किश्वर को देखकर मेरा दिल मसल कर रह गया... वो मुझे अजीब घबराई और खोई...
एक दिन रेवती ने कहा, "बेटा तुमने ग़रीब को सताया है अच्छा न किया।" हीरामन ने तेज़ हो कर जवाब दिय, "वो ग़रीब नहीं है, उसका घमंड तोडूँगा।"...
उस दिन घर में चूल्हा नहीं जला। ऐसा मालूम होता था गोया हरखू आज मरा है। उस की मौत का सदमा आज हो रहा था। लेकिन सुभागी यूं तक़दीर पर शाकिर होने वाली औरत ना थी। वो ख़ाना जंगियों में अक्सर ज़बान के तीर-ओ-तुफ़ंग से ग़ालिब आ जाया करती थी।...
कभी कभी सलाहू नाराज़ हो जाता। ये वक़्त दूदे पहलवान के लिए बड़ी आज़माईश का वक़्त होता था। दुनिया से बेज़ार हो जाता। फ़क़ीरों के पास जा कर तावीज़ गंडे ले लेता। ख़ुद को तरह तरह की जिस्मानी तकलीफ़ पहुंचाता। आख़िर जब सलाहू मौज में आकर उसे बुलाता तो उसे...
ख़ान साहब कड़क कर बोले, "अबे जा, चार भले आदमी बीच में पड़ गए जो मैं रुक गया, नहीं तो नतीजा तो आज ऐसा बताता कि छट्टी का दूध याद आ जाता।" मौलवी साहब ने तन कर फ़रमाया, "ताक़त के घमंड में न रहना ख़ान साहिब! अंग्रेज़ का राज है,...
काफ़िर न घमंड रख ख़ुद-आराई कासब कुछ हों जो बुत तो फिर ख़ुदाई कैसी
कभी कभी उसे होता है अपनी ज़ात पे नाज़कभी घमंड लियाक़त पे और सिफ़ात पे नाज़
तुझ को अपनी ज़मीन का है घमंडतुझ से अफ़ज़ल कहीं है अमरीका
“अजीब ही सही मगर ये एक हक़ीक़त है। मेरा ये मतलब नहीं कि मैं किसी बदसूरत लड़की से शादी करना चाहता था। नहीं ये बात नहीं। मगर किसी हसीन लड़की को ब्याह लाना मुझे पसंद नहीं।” “ओह बड़ा घमंड है उन्हें।” नाज़ली ने मेरे कान में कहा।...
मियाँ चश्म-ए-जादू पे इतना घमंडख़त-ओ-ख़ाल ओ गेसू पे इतना घमंड
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