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ग़ज़ल
महक उट्ठा यकायक रेगज़ार-ए-दर्द-ए-तन्हाई
किसे ऐ याद-ए-जानाँ तू यहाँ तक ढूँडने आई
ख़ुर्शीद अहमद जामी
ग़ज़ल
देखना ऐ 'दर्द' हो जाएँगे दिल कितने असीर
ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ आज वो खोले हुए महफ़िल में है
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
ग़म जुदाई का शब-ए-फ़ुर्क़त में दिल पर हमनशीं
दर्द बन कर छाएगा मैं ने कभी सोचा न था
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
दर्द-ए-तन्हाई तड़प सोज़ ख़ला बेचैनी
लफ़्ज़ क्या क्या ये मोहब्बत भी सिखाती है हमें
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
वो अब हमारे पहलू में बैठे हुए हैं 'दर्द'
डर ये है मर न जाएँ कहीं इस ख़ुशी से हम