आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी"
ग़ज़ल
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
इक गौहर-ए-नायाब मिरे हाथ लगा है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
कसरत से दाग़ हैं जो ग़म-ए-इश्क़-ए-ख़ाल में
तिल भर जगह नहीं है दिल-ए-पुर-मलाल में
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
दाग़-ए-ग़म-ए-हयात फ़रोज़ाँ है इन दिनों
रूह-ए-बहार ख़ार-बदामाँ है इन दिनों
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
है ये इब्तिदा ग़म-ए-इश्क़ की अभी ज़हर-ए-ग़म पिया जाएगा
कभी चाक होगा ये पैरहन कभी पैरहन सिया जाएगा