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ग़ज़ल
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
इस से पहले हम जुदा हों कुछ भरम बाक़ी रहे
दरमियाँ अब तल्ख़ सी ये दूरियाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
तुम आज हाथों से दूरियाँ नापते हो सोचो
दिलों में किस दर्जा फ़ासला था वबा से पहले