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ग़ज़ल
उड़ते उड़ते आस का पंछी दूर उफ़ुक़ में डूब गया
रोते रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ये मिरे पौदे ये मिरे पंछी ये मिरे प्यारे प्यारे लोग
मेरे नाम जो बादल आए बस्ती में बरसा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
हम ठहरे आवारा पंछी सैर गगन की करते हैं
जान के हम को क्या करना है कौन है कितने पानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
जिस पंछी की परवाजों में जोश-ए-जुनूँ भी शामिल हो
उस की ख़ातिर आब-ओ-दाना पहले भी था आज भी है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
लड़ते लड़ते आख़िर इक दिन पंछी की ही जीत हुई
प्राण पखेरू ने तन छोड़ा ख़ाली पिंजरा छूट गया
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
वो सब्ज़ डाल का पंछी मैं एक ख़ुश्क दरख़्त
ज़रा सी देर में वो अपना रास्ता लेगा