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ग़ज़ल
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मुझे तुझ से रुकावट और तू ग़ैरों पे माइल है
मिरा दिल अब तिरा दिल है तिरा दिल अब मिरा दिल है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
क़ातिल जो तेरे दिल में रुकावट न हो तो क्यूँ
रुक रुक के मेरे हल्क़ पे ख़ंजर तिरा चले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
रुकावट है ख़लिश है छेड़ है ईज़ा पे ईज़ा है
सितम अहल-ए-वफ़ा पर दम-ब-दम ऐसा भी होता है
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
रुकावट दिल की उस काफ़िर के वक़्त-ए-ज़ब्ह ज़ाहिर है
कि ख़ंजर मेरी गर्दन पर है रुक रुक कर रवाँ होता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
रुकावट रास्ते की मील का पत्थर नहीं होता
नज़र मंज़िल पे हो तो फ़ासलों का डर नहीं होता
अब्दुस सत्तार दानिश
ग़ज़ल
इस बात पर भला हम क्यूँकर न ज़हर खावें
हम से वही रुकावट ग़ैरों से यारियाँ हैं