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ग़ज़ल
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
पानी देने से निहाल-ए-क़द-ए-बाला बढ़ जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
तेरा नूर ज़ुहूर सलामत इक दिन तुझ पर माह-ए-तमाम
चाँद-नगर का रहने वाला चाँद-नगर लिख जाएगा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वो रात आख़िर हुई तो क्या ये दिन कब रहने वाला है
सितारे माँद होते हैं अगर सूरज भी ढलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
काट दी वक़्त ने ज़ंजीर-ए-तअल्लुक़ की कड़ी
अब मुसाफ़िर को कोई रोकने वाला भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
हमारे सामने यकसाँ है रुत्बा-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़
हमें तफ़ावुत-ए-सुब्ह-ओ-मसा नहीं मालूम
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
हुसूल-ए-ज़र न कस्ब-ए-रुत्बा-ए-ज़ी-शाँ पे रक्खी है
नज़र हम ने हमेशा ख़िदमत-ए-इंसाँ पे रक्खी है
मोहम्मद ख़ाँ साजिद
ग़ज़ल
हक़ तो ये है कि ख़लाओं के सफ़र ऐ 'मंशा'
अज़मत-ए-रुत्बा-ए-इंसाँ की ख़बर देते हैं
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
तुझे अल्लाह ने बख़्शा है कैसा रुतबा-ए-आली
कि तेरा नक़्श-ए-पा ताज-ए-सर-ए-अफ़्लाक होता है
रशीद लखनवी
ग़ज़ल
रुतबा-ए-आली हमारे दाग़-ए-दिल का देखिए
रू-कश-ए-ख़ुर्शीद भी रश्क-ए-मह-ए-ताबाँ भी है