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ग़ज़ल
किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदलीं
लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आँसू बहते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ
अज़ीमाबाद में हम मुंतज़िर सावन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की
सिर्फ़ इक लम्हा बरसता रहा सावन बन के