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ग़ज़ल
ज़ब्त सैलाब-ए-मोहब्बत को कहाँ तक रोके
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है
साहिर होशियारपुरी
ग़ज़ल
सीने में कहीं रुकता है सैलाब-ए-जुनूँ-ख़ेज़
दिल ख़ून हुआ मेरा मोहब्बत के असर से
योगेन्द्र बहल तिश्ना
ग़ज़ल
क़त्ल ग़ुस्से में करो फेर के मुँह तुम मुझ को
देखना देख न ले चश्म-ए-तरह्हुम मुझ को