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ग़ज़ल
सवाल-ए-हक़-परस्ती पर ये बोले हज़रत-ए-वाइज़
निपटने दीजिए मुझ को तो जाहिल से ज़रा पहले
नज़्र फ़ातमी
ग़ज़ल
ज़रा सी बात पे दार-ओ-रसन तक बात जा पहुँची
उसूल-ए-हक़-परस्ती दा'वा-ए-बातिल पे याद आए
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
चे ख़ुश बवद कि बर आयद बेक करिश्मा दो कार
सनम बग़ल में है दिल महव-ए-हक़-परस्ती है
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
ख़ुलूस-ए-हक़-परस्ती है न जोश-ए-बुत-परस्ती है
पड़ी है ओस कैसी जज़्बा-ए-शैख़-ओ-बरहमन पर
आरिफ़ नदवी
ग़ज़ल
ज़ाहिदो पूजा तुम्हारी ख़ूब होगी हश्र में
बुत बना देगी तुम्हें ये हक़-परस्ती एक दिन
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
हक़-परस्ती की जो मैं ने बुत-परस्ती छोड़ कर
बरहमन कहने लगे इल्हाद का बानी मुझे