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ग़ज़ल
लगा हूँ मैं 'तलब' इस सच को झुटलाने में बरसों से
मैं कल आक़ा था जिस का अब मिरे बेटे की दासी है
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
मेरे बेटे मैं तुम्हें दोस्त समझने लगा हूँ
तुम बड़े हो के मुझे दुनिया दिखाना मिरे दोस्त
तैमूर हसन
ग़ज़ल
रात की सम्त देखो नहीं नींद उस दिन से आई नहीं
जब से वालिद के ही सामने उस के बेटे अलग हो गए