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ग़ज़ल
शहज़ादे तलवार थमा दे अब दरबान के हाथों में
कह दे ख़ाली हाथ न जाए अब के बार सवाली का
मुमताज़ गुर्मानी
ग़ज़ल
ये आरज़ू है कि वो नामा-बर से ले काग़ज़
बला से फाड़ के फिर हाथ में न ले काग़ज़
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
ग़ैर का ज़िक्र ही क्या मुफ़्त में इल्ज़ाम न दो
दिल की हर बात मैं तुम से भी कहाँ कहता हूँ
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
हाए जाँ-बाज़ों की महरूमी-ए-क़िस्मत 'मसऊद'
माअ'रके में जो किसी हाथ में तलवार न हो
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
जाम सभी के हाथों में है हाथ हमारे ख़ाली हैं
खुल्लम-खुल्ला ना-इंसाफ़ी साक़ी अच्छी बात नहीं
जावेद जमील
ग़ज़ल
उन्हें ये दुख कि उलट दी है मैं ने ही बाज़ी
मुझे ये ग़म कि मिरे हाथ में दिया न रहा