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ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर जुगनुओं की रौशनी से घर तो रौशन है
मगर फिर भी मिरे घर का अंधेरा कम नहीं होता
अब्दुल मन्नान समदी
ग़ज़ल
बढ़ चुकी हैं अब तिरी फ़िक्र-ओ-नज़र की वुसअतें
जुगनुओं को छोड़ अब शम्स ओ क़मर से बात कर
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
मेरे क़िस्से में अचानक जुगनुओं का ज़िक्र आया
आसमाँ पर मेरे हिस्से के सितारे जल रहे हैं