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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
सोच अभी से फिर क्या होगा बीत गई जब रात मिलन की
एक उदासी रह जाएगी पायल की झंकार के पीछे
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
मिलन-सारी भी सीखो जब निगाह-ए-नाज़ पाई है
मिरी जाँ आदमी अख़्लाक़ से तलवार जौहर से
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
ऐसी बात मिलन में कब होगी जैसी इस पल में है
सब के बीच में मैं हूँ, वो है ओर ख़ामोश इशारे हैं
अजमल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दिलों के क़ैद-ख़ानों में उमंगें फड़फड़ाती हैं
बहुत मुश्किल मिलन है फिर तो हम महसूर ही अच्छे
जिया शाह
ग़ज़ल
किसे विश्वास होगा हम मिलन-तट छू नहीं पाए
रहे नज़दीक यूँ जैसे नदी के दो किनारे हैं