aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "'gaurii'"
गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुतघर के दर-ओ-दीवार भी हैं कमज़ोर बहुत
वो और मोहब्बत से मुझे देख रहा होक्या दिल का भरोसा मुझे धोका ही हुआ हो
सितमगरों का तरीक़-ए-जफ़ा नहीं जाताकि क़त्ल करना हो जिस को कहा नहीं जाता
और भी गहरी हो जाती है उस की सरगोशीमुझ से किसी की आँखों की जब बातें करता है
ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआजंगल जंगल सन्नाटा सफ़्फ़ाक हुआ
भड़कती आग है शो'लों में हाथ डाले कौनबचा ही क्या है मिरी ख़ाक को निकाले कौन
मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल-ए-ख़ाम है क्यातिरा बदन कोई शमशीर-ए-बे-नियाम है क्या
ताज़ा है उस की महक रात की रानी की तरहकिसी बिछड़े हुए लम्हे की निशानी की तरह
ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगेदर्द के सब क़िस्से याद-ए-माज़ी हो जाएँगे
रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल होख़ंजर जैसा भी हो लेकिन क़ातिल हो
हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता हैसर ऊँचा करता हूँ तो सर जाता है
मरने का सुख जीने की आसानी देअनदाता कैसा है आग न पानी दे
रहे न 'ऐबक' ओ 'ग़ौरी' के मारके बाक़ीहमेशा ताज़ा ओ शीरीं है नग़्मा-ए-'ख़ुसरौ'
एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होतीदिल के बुझने से दुनिया तारीक नहीं होती
रास्ते में कहीं खोना ही तो हैपाँव क्यूँ रोकूँ कि दरिया ही तो है
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो हैमैं भी चुप था कि चलो सीने में ख़ंजर ही तो है
और गुलों का काम नहीं होता कोईख़ुश्बू का इनआ'म नहीं होता कोई
मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगीजो तर्ज़ निकालूँगा मिसाली ही रहेगी
मुराद-ए-शिकवा नहीं लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू के सिवाबचा है पैरहन जाँ में क्या रफ़ू के सिवा
मैं अक्स-ए-आरज़ू था हवा ले गई मुझेज़िंदान-ए-आब-ओ-गिल से छुड़ा ले गई मुझे
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