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ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा
उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हर इक अज़्व-ए-बदन मातम-कुनाँ है दिल के जाने से
हुआ यूसुफ़ जो गुम तो कारवाँ का कारवाँ रोया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
दिलबरी का जब हुआ उस सर्व-क़ामत को ख़याल
उज़्व उज़्व अपना वहीं मिस्ल-ए-सनोबर दिल हुआ
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
कुश्ता-ए-तेग़-ए-जुदाई हूँ यक़ीं है मुझ को
उज़्व से उज़्व क़यामत में जुदा पैदा हो
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
यही हर उज़्व से आती है सदा फ़ुर्क़त में
वक़्त ये वो है जुदा भाई से भाई हो जाए