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ग़ज़ल
मोहब्बत में जो डूबा हो उसे साहिल से क्या लेना
किसे इस बहर में जा कर किनारा याद रहता है
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
कश्ती-ए-दिल की इलाही बहर-ए-हस्ती में हो ख़ैर
नाख़ुदा मिलते हैं लेकिन बा-ख़ुदा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हमारे दिल को बहर-ए-ग़म की क्या ताक़त जो ले बैठे
वो कश्ती डूब कब सकती है जिस के ना-ख़ुदा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
'सनाई' के अदब से मैं ने ग़व्वासी न की वर्ना
अभी इस बहर में बाक़ी हैं लाखों लूलू-ए-लाला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं बहर-ए-फ़िक्र में हूँ ग़र्क़ इस लिए 'नायाब'
गुहर मुझे भी कोई ज़ेर-ए-आब मिल जाए