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ग़ज़ल
फिर नग़्मा-हा-ए-क़ुम तो फ़ज़ा में हैं गूँजते
तू ही हरीफ़-ए-ज़ौक़-ए-समाअत नहीं रहा
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
मय-ख़ाने में सौ मर्तबा मैं मर के जिया हूँ
है क़ुलक़ुल-ए-मीना मुझे क़ुम-क़ुम से ज़ियादा
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
सकत बाक़ी नहीं है क़ुम बे-इज़्निल्लाह कहने की
मसीहा भी हमारे दौर के बीमार कितने हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का
गर्म-ए-सफ़र है क़ाज़-ए-क़ाफ़िला सैल-ए-रवाँ है तीरों का
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
बाज़ जद्दम से दर-ए-अद्ल-ए-शह-ए-आलम है
बच्चा-ए-क़ाज़ भी करता है यहाँ बाज़ से रम्ज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
मय-ख़ाने में सौ मर्तबा मैं मर के जिया हूँ
है क़ुलक़ुल-ए-मीना मुझे क़ुम-क़ुम से ज़ियादा
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
वो लब-ए-जिबरील का परतव हसीं तर्ज़-ए-कलाम
क़ुम-बे-इज़्नी का हम ए'जाज़-ओ-अदा कल रात को