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ग़ज़ल
जो रौशनी का नगर कभी था वो आज अँधेरों में गुम हुआ है
उजाड़ अँधेरी उदास वीराँ इमारतें क्या शुमार करना
अंजुम उसमान
ग़ज़ल
तारीख़ क्या है वक़्त के क़दमों की गर्द है
क़ौमों के औज-ओ-पस्त की इक दास्ताँ है वक़्त
अब्दुल्लाह जावेद
ग़ज़ल
हो कशिश थोड़ी अगर फिर औज-ओ-पस्ती कुछ नहीं
ज़र्रे ने खींचा है कितना मेहर की तनवीर को