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ग़ज़ल
सच कहते हैं शैख़ 'अकबर' है ताअत-ए-हक़ लाज़िम
हाँ तर्क-ए-मय-ओ-शाहिद ये उन की बुज़ुर्गी है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
इन परी-ज़ादों से लेंगे ख़ुल्द में हम इंतिक़ाम
क़ुदरत-ए-हक़ से यही हूरें अगर वाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
'नुशूर' अहल-ए-ज़माना बात पूछो तो लरज़ते हैं
वो शा'इर हैं जो हक़ कहने से कतराया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं
ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं