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ग़ज़ल
इस हरीम-ए-क़ुद्स में क्या लफ़्ज़ ओ मअ'नी का गुज़र
फिर भी सब बातें पहुंचती हैं लब-ए-फ़रियाद की
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
मुर्ग़ान-ए-क़ुद्स के लिए गुल-दाम ले गया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
ख़लवत-ए-क़ुद्स की बे-पर्दा तजल्ली को न पूछ
शौक़-ए-नज़्ज़ारा में सिर्फ़ आँख का पर्दा देखा
औज लखनवी
ग़ज़ल
जो क़ुद्स की सरज़मीं पे रौशन सितारा बन के चमक रहा था
ब-रोज़-ए-महशर गवाह उस का अजम से ले कर अरब बनेगा
शाहनवाज़ अंसारी
ग़ज़ल
उरूज क़ादरी
ग़ज़ल
यक़ीं जिस का कलाम-ए-क़ुद्स अज्र-उल-मोहसिनीं पर हो
निको-कारी का उस की क़ाइल इक दिन कुल जहाँ होगा
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
अदब से अर्श-ए-आज़म भी झुका देता है सर अपना
हरीम-ए-क़ुद्स में इंसान का जब नाम आता है