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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
राजा नल का जो पड़ा अक्स-ए-दहन आईने में
तो नज़र आई उसे शक्ल-ए-दमन आईने में
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
लोग उन की बज़्म में रह कर भी हैं महरूम-ए-दीद
जाँ-ब-लब हैं प्यास से बैठे हुए हैं नल के पास
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
ऐसे क्यूँ टूट आईं जोश सीं प्यारे हरारत के
लगी थी गर्म हो कर इस क़दर ये किस के नाल अँखियाँ