aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुएहम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
वो जो ता'मीर होने वाली थीलग गई आग उस इमारत में
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन कीवर्ना ये फ़क़त आग बुझाने के लिए हैं
आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानीजब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
अजीब दुख है हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैंअजीब दुख है हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है
चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़ मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िरन नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ
शम्अ' जिस आग में जलती है नुमाइश के लिएहम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
यार हवा से कैसे आग भड़क उठती हैलफ़्ज़ कोई अँगारा कैसे हो सकता है
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैंये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
हर एक लहज़ा यही आरज़ू यही हसरतजो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाए
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगामैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वालेरंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा
दिल जो है आग लगा दूँ उस कोऔर फिर ख़ुद ही हवा दूँ उस को
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीबमैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत जानाँऔर मिरी ज़ात को सूखा हुआ जंगल कर दो
ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगतीन तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता
वैसी ही बे-तलब है अभी मेरी ज़िंदगीवो ख़ार-ओ-ख़स में आग लगा कर नहीं गया
न पूछ आलम-ए-बरगश्ता-तालई 'आतिश'बरसती आग जो बाराँ की आरज़ू करते
बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहनाइक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना
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