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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-नाला में गोया हल्क़ा हूँ ज़े-सर-ता-पा
उज़्व उज़्व जूँ ज़ंजीर यक-दिल-ए-सदा पाया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये ग़ज़ल अपनी मुझे जी से पसंद आती है आप
है रदीफ़-ए-शेर में 'ग़ालिब' ज़ि-बस तकरार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
गुम हो के हर जगह हैं ज़-ख़ुद रफ़्तगान-ए-इश्क़
उन की भी अहल-ए-कश्फ़-ओ-करामात ज़ात है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मैं ज़-ख़ुद रफ़्ता हुआ सुनते ही जाने की ख़बर
पहले मैं आप में आ लूँ तो चले जाइएगा
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
'जिगर' वो भी ज़े-सर-ता-पा मोहब्बत ही मोहब्बत हैं
मगर उन की मोहब्बत साफ़ पहचानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हिर फिर के उन की आँख 'अदू से लड़े न क्यूँ
फ़ित्ना को करती है निगह-ए-फ़ित्ना-ज़ा पसंद
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
राज़-ए-दरून-ए-पर्दा ज़े-रिंदान-ए-मस्त पुर्स
सालिक है क्यूँ हिजाब-ए-शुहूद-ओ-वजूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
बरा-ए-हल्ल-ए-मुश्किल हूँ ज़ि-पा उफ़्तादा-ए-हसरत
बँधा है उक़्दा-ए-ख़ातिर से पैमाँ ख़ाकसारी का