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ग़ज़ल
बैठे हैं अपनी सीट पर कैसे भगाएँ मास्टर
आए हैं दे के फ़ीस हम कोई हमें भगाए क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
अनुभव ज़िंदगी की सब से अच्छी पाठशाला है
मगर कम्बख़्त उस की फ़ीस इतनी है कि तौबा है
डॉ अंजना सिंह सेंगर
ग़ज़ल
बच्चों की फ़ीस माँ कि दवाओं का फ़र्ज़ भी
इतनी सी इक कमाई में क्या क्या करेंगे हम
अली असर बांदवी
ग़ज़ल
याद के फेर में आ कर दिल पर ऐसी कारी चोट लगी
दुख में सुख है सुख में दुख है भेद ये न्यारा भूल गया
मीराजी
ग़ज़ल
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मिरा दिल फेर दो मुझ से ये झगड़ा हो नहीं सकता