aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ",jAq"
सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन मेंमिज़ाज और ही लाल ओ गुहर के देखते हैं
इक 'उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूमऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार केवो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
किया था अह्द जब लम्हों में हम नेतो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूदफिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है
ईमान-ओ-इत्तिहाद की तंज़ीम खो गईअब खाँचा जैक पव्वा चलाता है ये निज़ाम
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी काअगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जाकि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं
तू कि यकता था बे-शुमार हुआहम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ
जान कर सोता तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मिराऔर तिरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
तेरा फ़िराक़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिएया'नी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई
उस को न पा सके थे जब दिल का 'अजीब हाल थाअब जो पलट के देखिए बात थी कुछ मुहाल भी
तिरे वा'दे पर जिए हम तो ये जान झूट जानाकि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बामजब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगाकुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छाइस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा
है वो जान अब हर एक महफ़िल कीहम भी अब घर से कम निकलते हैं
कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँफिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
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