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ग़ज़ल
मेरे बा'द वफ़ा का धोका और किसी से मत करना
गाली देगी दुनिया तुझ को सर मेरा झुक जाएगा
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
'मुनीर' अंदाज़ा-ए-क़ार-ए-फ़ना करना हो जब मुझ को
किसी ऊँची जगह से झुक के नीचे देख लेता हूँ
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मैं फ़क़ीर आस्ताँ हूँ मिरी लाज रख ख़ुदारा
ये जबीन-ए-शौक़ मेरी तिरे दर पे झुक गई है
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
तलवे सहलाने में गो ऊँघ के झुक झुक तो पड़े
पर मज़ा भी वो उड़ाया है कि जी जाने है