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ग़ज़ल
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
ये दुनिया-भर के झगड़े घर के क़िस्से काम की बातें
बला हर एक टल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
क्यूँ न तश्बीह उसे ज़ुल्फ़ से दें आशिक़-ए-ज़ार
वाक़ई तूल-ए-शब-ए-हिज्र बला होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त का जब कुछ तूल कम होना नहीं मुमकिन
तो मेरी ज़िंदगी का मुख़्तसर अफ़्साना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
बर्क़ किया है अक्स-ए-बदन ने तेरे हमें इक तंग क़बा
तेरे बदन पर जितने तिल हैं सारे हम को याद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए
मैं ढेर हो गया तूल-ए-सफ़र से डरते हुए