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ग़ज़ल
मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी
ग़ज़ल
उनो यहाँ आओ कहेंगे तो कहूँगी काम करती हूँ
अठलती होर मठलती चुप घड़ी दो-चार बैठूँगी
हाश्मी बीजापुरी
ग़ज़ल
न हो आज़ाद दौर-ए-चर्ख़ की हल्क़ा-ब-गोशी से
तिरा मरकूज़ दिल-ए-माओ-शुमा और ईन-ओ-आँ तक है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
पड़ गया जब तू ही ईन-ओ-आँ की उलझन में 'शुजाअ'
लाख फिर सज्दे में शब भर तेरी पेशानी पड़े
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
'आरज़ू' मेरी ज़ीस्त अब तिश्ना-ए-ईन-ओ-आँ नहीं
मेरा गुज़र है आज-कल यार की बज़्म-ए-नाज़ में