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ग़ज़ल
न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है
तबद्दुल याँ है हर साअ'त कभी यूँ है कभी वूँ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कन-अँखियों की निगह गुपती इशारत क़हर चितवन के
जो वूँ देखा तो बर्छी है जो यूँ देखा तो भाला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कहते हो वूँ से हो के इधर आओ वूँ चलें
क्या ख़ूब क्यूँ न दौड़ पड़ूँ ऐसे दम के साथ
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
लेक उठ कर जब वो जाता है तो बे-ताबी से मैं
वूँ ही कहता हूँ ''तिरे क़ुर्बान जाऊँ आ, न जा''
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
जूँ चाहिए वूँ दिल की निकालूँगा हवस मैं
जिस दिन वो मुझे कैफ़ में सरशार मिलेगा
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
जूँ जूँ बढ़ते हैं मिरे दस्त-ए-जुनूँ के नाख़ुन
वूँ वूँ होते हैं पए-सीना-फ़िग़ारी तय्यार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
क्या पास-ए-इश्क़ है कि मूए पर भी राज़-ए-इश्क़
सर-बस्ता वूँ ही हर क़लम-ए-उस्तुख़्वाँ में था
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
ख़म न हो पाया तो सर हम ने क़लम करवा लिया
वूँ न कुछ 'माजिद' हुआ हम से तो यूँ करना पड़ा