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ग़ज़ल
वो जुदा हो कर दोबारा मिल सकेगा या नहीं
करते करते उम्र भर हम इस्तिख़ारे मर गए
सैयद जॉन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
न जाने कौन ख़ला के ये इस्तिआरे हैं
तुम्हारे हिज्र की गलियों में गूँजते हुए दिन
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
फूल ख़ुश्बू रंग तितली इस्तिआ'रे हैं मगर
मुझ को ये सब नाम दे कर मो'तबर उस ने किया