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ग़ज़ल
देखता रहता है बंदों पर मुसलसल सख़्तियाँ
क्या ख़ुदा इक इस्म-ए-आज़म के सिवा कुछ भी नहीं
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
टूटता ही नहीं रंगीनी-ए-ख़्वाहिश का तिलिस्म
इस्म-ए-आज़म का अमल भी तो सिखाया है मुझे
जावेद वशिष्ट
ग़ज़ल
मैं इस्म-ए-आज़म का मो'जिज़ा हूँ मैं नाख़ुदा हूँ
मैं चाँद तारों में और ग़ारों में रह चुका हूँ