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ग़ज़ल
मुझ ऐसे लोगों का टेढ़-पन क़ुदरती है सो ए'तिराज़ कैसा
शदीद नम ख़ाक से जो पैकर बनेगा ये तय है ख़म बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
यूँ मेरे साथ बज़्म में ग़ैरों का बैठना
वो ए'तिराज़ है कि उठाया न जाएगा
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
ग़ज़ल
नहीं है ए'तिराज़-ए-बंदगी लेकिन मुझे नासेह
जहाँ सर तू झुकाता है वो दर अच्छा नहीं लगता
फ़राज़ हसनपूरी
ग़ज़ल
नहीं है ए'तिराज़-ए-बंदगी लेकिन मुझे नासेह
जहाँ सर तू झुकाता है वो दर अच्छा नहीं लगता