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ग़ज़ल
दूर कर देते हैं अहबाब-ओ-अक़ारिब को नदीम
मुँह से निकले हुए अल्फ़ाज़ के नश्तर कितने
अज़ीज़ ख़ाँ अज़ीज़
ग़ज़ल
सना हाश्मी
ग़ज़ल
क़ल्ब में तेरे रहे ख़्वेश-ओ-अक़ारिब का ग़म
फ़िक्र करना न कभी अपना जहाँ टूट गया
सय्यद ख़ादिमे रसूल ऐनी
ग़ज़ल
तुंदी-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊँचा उड़ाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
ग़ज़ल
नहनो-अक़रब की नहीं है रम्ज़ से तू आश्ना
वर्ना वो नज़दीक है तू आप उस से दूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
रक़्स इस ज़ोहरा-जबीं का है अदू के घर में
मेहर मीज़ाँ में है अक़रब में क़मर आज की रात
नसीम मैसूरी
ग़ज़ल
पड़ चुके बहुत पाले डस चुके बहुत काले
मूज़ियों के मूज़ी को फ़िक्र-ए-नीश-ए-अक़रब क्या