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ग़ज़ल
क्यूँकर न अहल-ए-बज़्म में ऐ 'शाद' हो रुसूख़
नेमुल-बदल हूँ 'रासिख़'-ए-ग़ुफ़राँ-पनाह का
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
शायरी की और नज़र-अंदाज़ की बच्चों की भूक
चाँद को रोटी का मैं नेमुल-बदल कहता रहा
इफ़्तिख़ार नसीम
ग़ज़ल
लफ़्ज़ों में कब सिमटता है वो सेहर-ए-बे-कराँ
शे'रों को हुस्न-ए-दोस्त का नेमुल-बदल न लिख
सहबा अख़्तर
ग़ज़ल
क्या कहूँ ऐ होश-मंदा बे-ख़ुदी की लज़्ज़तें
इस का तो नेमुल-बदल सारी ख़ुदाई भी नहीं