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ग़ज़ल
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनिया से कोई ले कर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
हमें भी अपने अच्छे दिन अभी तक याद हैं 'राना'
हर इक इंसान को अपना ज़माना याद रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
हुस्न-ए-बे-परवा को अपनी बे-नक़ाबी के लिए
हों अगर शहरों से बन प्यारे तो शहर अच्छे कि बन