आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "باتوں"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "باتوں"
ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
निगाह-ए-बादा-गूँ यूँ तो तिरी बातों का क्या कहना
तिरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
गुफ़्तुगू तू ने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
न बरतो उन से अपनाइयत के तुम बरताव ऐ 'मुज़्तर'
पराया माल इन बातों से अपना हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
अजब क्या इस क़रीने से कोई सूरत निकल आए
तिरी बातों को ख़्वाबों से मिला कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
बातों बातों में पयाम-ए-मर्ग भी आ ही गया
उन निगाहों को हयात-अफ़्ज़ा समझ बैठे थे हम