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ग़ज़ल
اے باد صبا! کملي والے سے جا کہيو پيغام مرا
قبضے سے امت بيچاري کے ديں بھي گيا، دنيا بھي گئي
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना
है बजा ज़ख़्म-ए-बदन को गुल-ए-ख़ुद-रू लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल कुछ भी नहीं बाद-ए-सबा कुछ भी नहीं
तेरी महफ़िल हो तो जन्नत की फ़ज़ा कुछ भी नहीं
मसूदा हयात
ग़ज़ल
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म था बर्ग-ए-हिना के होते हुए