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ग़ज़ल
अपना तो ये काम है भाई दिल का ख़ून बहाते रहना
जाग जाग कर इन रातों में शे'र की आग जलाते रहना
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
जो अपने पास हों उन की कोई क़ीमत नहीं होती
हमारे भाई को ही लो बिछड़ कर याद आता है
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
इक भाई को दूजे भाई से लड़ने का जो देते हैं पैग़ाम
वो लोग न जाने फिर कैसे जम्हूर की बातें करते हैं
ओबैदुर रहमान
ग़ज़ल
दी मिरे भाई को हक़ ने अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी
मीरज़ा यूसुफ़ है 'ग़ालिब' यूसुफ़-ए-सानी मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
महीनों भाई-बंदों ने मिरा मातम किया 'मुज़्तर'
महीनों रोए ख़ाली चारपाई देखने वाले