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ग़ज़ल
हाए त्यौहारों ने लोगों को भिकारी कर दिया
क़र्ज़ लेना पड़ता है ख़ुशियाँ मनाने के लिए
अब्बास दाना
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
जितना इन से भाग रहा हूँ उतना पीछे आती हैं
एक सदा जारोब-कशी की इक आवाज़ भिकारी की