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ग़ज़ल
कितने कोह-ए-गिराँ काटे तब सुब्ह-ए-तरब की दीद हुई
और ये सुब्ह-ए-तरब भी यारो कहते हैं बेगानी है
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
बेगानी महफ़िल में आख़िर कब तक साथ ठहरते वो
थोड़ी देर तो ठहरे थे फिर काम बता कर चले गए
मिताली राज तिवारी
ग़ज़ल
दिलों को तोड़ने वालो बढ़ा कर दूरियाँ देखो
मोहब्बत फ़ासले रख कर भी बेगानी नहीं होती
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
तुम उन बेगानी राहों में आख़िर किस को ढूँड रहे हो
वो तो कब का लौट चुका है कल जो तुम्हारे साथ चला था
बलबीर राठी
ग़ज़ल
वही हैं कोई सूरत इन में बेगानी नहीं मिलती
वो चेहरे आह जिन चेहरों पे ताबानी नहीं मिलती
शौक़ असर रामपुरी
ग़ज़ल
जो अपनी ही रही न ऐसी बेगानी पे ला'नत हो
कि उस के मक्र पर और उस की नादानी पे ला'नत हो
मंज़र सुहैल
ग़ज़ल
उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़्सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बाँ पर है हर्फ़-ए-ग़ैर
बेगाना शय पे नाज़िश-ए-बेजा भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ