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ग़ज़ल
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
ज़ोफ़ से है ने क़नाअत से ये तर्क-ए-जुस्तुजू
हैं वबाल-ए-तकिया-गाह-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना हम
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ज़ोफ़ से है ने क़नाअत से ये तर्क-ए-जुस्तुजू
हैं वबाल-ए-तकिया-गाह-ए-हिम्मत-ए-मर्दाना हम