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ग़ज़ल
बासित भोपाली
ग़ज़ल
सुर कहाँ के साज़ कैसा कैसी बज़्म-ए-सामईन
जोश-ए-दिल काफ़ी है 'अकबर' तान उड़ाने के लिए
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सुर कहाँ के साज़ कैसा कैसी बज़्म-ए-सामईन
जोश-ए-दिल काफ़ी है 'अकबर' तान उड़ाने के लिए