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ग़ज़ल
हनूत चेहरों के आइनों में हवा की लहरों ने ये भी देखा
खंडर खंडर पर नए दिनों की बशारतें भी लिखी हुई हैं
अतहर सलीमी
ग़ज़ल
उजाड़ फ़स्लें हनूत साए मकान टीले सराब गलियाँ
उतर के पानी बना गया है ज़मीं पे नक़्श-ओ-निगार कैसे
अतहर सलीमी
ग़ज़ल
मुझे वफ़ाओं के क़हत का एक सख़्त मौसम गुज़ारना है
मोहब्बतों को हनूत कर के निगार-ख़ाना बना रहा हूँ
मोहम्मद ओवैस मालिक
ग़ज़ल
सीनों के एहरामों वाले ज़िंदा अजूबे धड़-धड़ धड़कें
नीम-दिलों के नील किनारे तब सामान-ए-हनूत बहाना