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ग़ज़ल
न अब वो ख़ुश-नज़री है न ख़ुश-ख़िसाली है
ये क्या हुआ मुझे ये वज़्अ क्यूँ बना ली है
मुशफ़िक़ ख़्वाजा
ग़ज़ल
रक़ीबाँ की हुआ नाचीज़ बाताँ सुन के यूँ बद-ख़ू
वगर्ना जग में शोहरा था सनम की ख़ुश-ख़िसाली का
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
शम्अ' रौशन जिस्म-ए-फ़ानूस-ए-ख़याली में है आज
रूह जूँ मिस्ल-ए-मगस मक्ड़ों की जाली में आज
मिस्कीन शाह
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
बे-ख़याली में यूँही बस इक इरादा कर लिया
अपने दिल के शौक़ को हद से ज़ियादा कर लिया