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ग़ज़ल
शबीना अदीब
ग़ज़ल
خموش اے دل! ، بھري محفل ميں چلانا نہيں اچھا
ادب پہلا قرينہ ہے محبت کے قرينوں ميں
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बज़्म में उस के रू-ब-रू क्यूँ न ख़मोश बैठिए
उस की तो ख़ामुशी में भी है यही मुद्दआ कि यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे